बीजू जनता दल (बीजेडी) की नेतृत्व प्रणाली और निर्णय लेने की प्रक्रिया पर एक तूफ़ान मंडरा रहा है। एक समय में नवीन पटनायक के नेतृत्व में एकजुटता का किला मानी जाने वाली पार्टी अब कानाफूसी, होटल मीटिंग्स और एक विवादास्पद बिल की वजह से दोराहे पर खड़ी दिख रही है। वजह? राज्यसभा में एक सामान्य सा वोट जिसने पार्टी के भीतर की खाई को उजागर कर दिया। ओडिशा अब पूछ रहा है: बीजेडी की असली कमान किसके हाथ में है?
वक्फ बिल बना विवाद का कारण
वक्फ संशोधन बिल अब केवल एक विधायी मुद्दा नहीं रहा, यह पार्टी में नियंत्रण की परीक्षा बन गया है। बीजेडी के सात राज्यसभा सांसदों में से तीन ने बिल के पक्ष में, तीन ने विरोध में और एक, देबाशीष सामंतराय ने मतदान से दूरी बनाई। यहाँ गिनती से ज़्यादा अहम था स्वतंत्र रूप से मतदान करना—एक ऐसी पार्टी, जो अपनी अनुशासित कार्यशैली के लिए जानी जाती थी, अब ‘अंतरात्मा की आवाज़’ से मतदान करा रही है?
इस आग में घी डालने का काम किया वी.के. पंडियन के खिलाफ उठे आरोपों ने। पटनायक के पूर्व निजी सचिव और विश्वसनीय सलाहकार माने जाने वाले पंडियन, जिन्होंने दस महीने पहले सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया था, अब भी कथित रूप से पार्टी के फैसलों को प्रभावित कर रहे हैं। सामंतराय ने बिल पर पार्टी के रुख में बदलाव का ज़िम्मेदार पटनायक के सलाहकार को ठहराया। इन मतभेदों के बीच नवीन पटनायक ने अपने भरोसेमंद पंडियन का बचाव करते हुए कहा कि उन्होंने ओडिशा और बीजेडी के लिए सराहनीय कार्य किया है, लेकिन अब वे किसी भी पार्टी निर्णय में शामिल नहीं हैं। “उन्हें किसी बात का दोष नहीं देना चाहिए,” उन्होंने जोड़ा।

लेकिन पटनायक के इस बयान ने एक और सवाल खड़ा कर दिया—क्या वास्तव में वही पार्टी चला रहे हैं, या फिर उनका पूर्व सलाहकार अभी भी परदे के पीछे से संचालन कर रहा है? सामंतराय के आरोपों के अलावा, राज्यसभा सांसद मुझिबुल्ला खान के साथ पार्टी कार्यकर्ताओं ने जब नवीन के आवास का रुख किया, तो वहां ‘पंडियन विरोधी’ नारे भी लगे।
होटल मीटिंग्स की खामोश गूंज
अगर राज्यसभा का वोट विचारधारात्मक दरार को उजागर करता है, तो पार्टी कार्यालय के बजाय होटल में हो रही मीटिंग्स संगठनात्मक संकट की ओर इशारा करती हैं। पार्टी के आधिकारिक मुख्यालय संखा भवन की जगह वरिष्ठ नेता अब भुवनेश्वर के होटलों में जुटने लगे हैं—जो कि असहमति का एक अनकहा संकेत है।
नवीन पटनायक ने इन होटल मीटिंग्स पर सार्वजनिक नाराज़गी जताई और सभी चर्चाओं को आधिकारिक स्थलों पर करने का आग्रह किया। लेकिन वरिष्ठ नेता प्रफुल्ल मल्लिक ने सख़्त प्रतिक्रिया दी: “हम कोई वेतनभोगी कर्मचारी नहीं हैं जिन्हें हुक्म चलाकर चलाया जा सके।” यह बयान, सीधा और तीखा, बीजेडी के वरिष्ठ नेतृत्व में बढ़ती बेचैनी को दर्शाता है।
पंडियन: पार्टी के भीतर एक बाहरी चेहरा?
सक्रिय राजनीति से रिटायर होने के बावजूद वी.के. पंडियन बीजेडी के भीतर एक विवादास्पद शख्सियत बने हुए हैं। कुछ लोग उनकी तेज़ी से हुई पदोन्नति और केंद्रीकृत शैली को पुराने नेताओं के हाशिए पर जाने और चुनावी असफलताओं का कारण मानते हैं, वहीं कुछ मानते हैं कि उन्हें पार्टी की विफलताओं का ‘बलि का बकरा’ बनाया जा रहा है। वरिष्ठ नेता प्रवात त्रिपाठी ने भी हाल ही में पार्टी की परेशानियों के पीछे पंडियन के प्रभाव को जिम्मेदार ठहराया।
इसके विपरीत, चार सांसदों ने पंडियन का समर्थन करते हुए आरोप लगाने वालों पर जवाबी हमला बोला। उन्होंने कहा कि पंडियन को एक ‘सुविधाजनक खलनायक’ बनाया जा रहा है ताकि अंदरूनी असफलताओं से ध्यान हटाया जा सके।
एक बात तो स्पष्ट है: चाहे पंडियन फैसले ले रहे हों या नहीं, उनका नाम ही पार्टी में विवाद का कारण बनने के लिए काफी है।
नेतृत्व की असली परीक्षा?
नवीन पटनायक ने बीजेडी को प्राकृतिक आपदाओं, राजनीतिक तूफानों और बदलती राष्ट्रीय राजनीति की धाराओं में मजबूती से चलाया है। दो दशक से भी ज़्यादा समय तक उनके नेतृत्व को कभी खुलकर चुनौती नहीं मिली—लेकिन अब स्थितियाँ बदलती दिख रही हैं। कोई खुला विद्रोह नहीं हुआ है, लेकिन कानाफूसी तेज़ हो गई है, गुटबाज़ी उभर रही है, और सब्र कम हो रहा है।
जैसे-जैसे पार्टी के भीतर से ज्यादा सलाह-मशवरे की मांग उठने लगी है, पटनायक अपने अब तक के सबसे कठिन दौर से गुज़र रहे हैं। ओडिशा की जनता की निगाहें इस राजनीतिक नाटक पर टिकी हुई हैं, जो केवल बीजेडी की नेतृत्व प्रणाली को ही नहीं बल्कि राज्य की राजनीतिक दिशा को भी नया मोड़ दे सकता है।