26 वर्षीय लेफ्टिनेंट विनय नारवाल और उनकी पत्नी हिमांशी नारवाल अपनी शादी के कुछ ही दिनों बाद हनीमून के लिए कश्मीर गए थे। लेकिन खुशियों से भरी यह यात्रा कुछ ही पलों में दर्दनाक कहानी बन गई।
16 अप्रैल को शादी, 22 अप्रैल को शहादत
हरियाणा के करनाल निवासी लेफ्टिनेंट विनय नारवाल की शादी 16 अप्रैल को हिमांशी से हुई थी। 19 तारीख को रिसेप्शन हुआ और 21 अप्रैल को यह नवविवाहित जोड़ा कश्मीर के लिए रवाना हुआ। अगले दिन 22 अप्रैल को, वे पहलगाम के पास स्थित बाइसारन की खूबसूरत वादियों में भेलपुरी का आनंद ले रहे थे, तभी एक आतंकी ने लेफ्टिनेंट नारवाल को सिर में गोली मार दी।
हिमांशी की आंखों के सामने उनका जीवन उजड़ गया। उनका चेहरा खून से लथपथ हो गया। एक वीडियो में वे रोते हुए कहती हैं, “हम भेलपुरी खा रहे थे, तभी एक आदमी आया और मेरे पति को गोली मार दी।”

दिल्ली में अंतिम विदाई
23 अप्रैल को लेफ्टिनेंट नारवाल का पार्थिव शरीर दिल्ली लाया गया। हिमांशी ने उनके ताबूत के पास खड़े होकर उन्हें गले लगाया और फूट-फूट कर रोईं। फिर अचानक उन्होंने खुद को संभाला, सीधे खड़ी हुईं और गर्व से “जय हिंद” कहते हुए अपने शहीद पति को सलामी दी।
वह बार-बार ताबूत के सामने झुकती रहीं और कहती रहीं, “ये उन्हीं जैसे लोगों की वजह से दुनिया चल रही है। हमें उन पर हर तरह से गर्व होना चाहिए।”
दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता भी वहां मौजूद थीं। उन्होंने भी शहीद को सलामी दी और हिमांशी से मिलकर संवेदनाएं व्यक्त कीं।
सेवा की बचपन से चाह
लेफ्टिनेंट नारवाल के दादा हवालदार हावा सिंह (BSF रिटायर्ड) ने NDTV से बताया कि विनय बचपन से ही सेना में जाना चाहता था।
“वो जब छोटा था और मिलिट्री की गाड़ियाँ देखता था तो मुझसे ढेरों सवाल करता था,” उन्होंने कहा।
हवा सिंह ने बताया कि उन्होंने विनय को इस कठिन रास्ते से हटाने की कोशिश भी की थी क्योंकि खुद BSF और हरियाणा पुलिस में सेवा के दौरान उन्होंने हालात देखे थे।
“मैंने कहा था, मत जाओ ये रास्ता, बहुत कठिन है। लेकिन वो मानता ही नहीं था।”

दो साल पहले Navy में हुए थे शामिल
लेफ्टिनेंट नारवाल दो साल पहले Indian Navy में सीधे SSB (Services Selection Board) से चयनित होकर शामिल हुए थे। 18 महीने पहले उन्हें प्रमोट कर लेफ्टिनेंट बना दिया गया था। वे फिलहाल कोच्चि में पोस्टेड थे।
उनकी शहादत उस आतंकी हमले में हुई जिसमें कुल 26 लोग मारे गए, जिनमें एक इंटेलिजेंस ब्यूरो का अफसर भी शामिल था। बाइसारन, जिसे ‘मिनी स्विट्ज़रलैंड’ भी कहा जाता है, उस दिन मातम की ज़मीन बन गया।
अब कोई लौटाकर नहीं ला सकता…
हवा सिंह कहते हैं, “अब कुछ नहीं हो सकता। लेकिन हमें उस पर गर्व है। वो सच्चा देशभक्त था और अंत तक देश की सेवा करता रहा।”