मुर्शिदाबाद में हिंसा: हिंदू समुदाय पर निशाना या एक राजनीतिक एजेंडा?
पश्चिम बंगाल,
वक्फ संशोधन विधेयक के पारित होते ही मुर्शिदाबाद और मालदा जिलों में भयावह हिंसा फैल गई। रिपोर्ट्स के अनुसार, 500 से अधिक हिंदू परिवारों को अपना घर छोड़कर भागना पड़ा। मंदिरों को अपवित्र किया गया, दुकानों को लूटा गया और हिंदू प्रतीकों वाली गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया गया।
स्थानीय लोगों का कहना है कि यह विरोध नहीं, बल्कि एक समुदाय विशेष को भयभीत करने की सुनियोजित कोशिश थी।
वक्फ विधेयक बना बहाना, हमला बना योजना

8 अप्रैल को जैसे ही वक्फ संशोधन विधेयक कानून बना, वैसे ही मुस्लिम बहुल इलाकों से भीड़ सड़कों पर उतर आई। मुर्शिदाबाद में फिलिस्तीनी झंडे लहराए गए और हिंदू मोहल्लों पर हमले शुरू हुए।
सांतरागाछी में महादेव स्टिकर वाली गाड़ियों को चुना गया, तुलसी माला पहनने वाले युवक को भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला। शमशेरगंज में हरगोबिंद और चंदन दास नामक पिता-पुत्र को बेरहमी से चाकू मारा गया।
पुलिस रही मूकदर्शक, जब तक केंद्र नहीं आया
चौंकाने वाली बात यह रही कि घटनास्थल पर मौजूद पुलिस मूकदर्शक बनी रही। दक्षिण बंगाल के डीआईजी ने पुष्टि की कि दंगाइयों ने BSF जवानों तक पर पेट्रोल बम फेंके। पर जैसे ही केंद्रीय बल पहुंचे, भीड़ छूमंतर हो गई — सवाल उठता है, आखिर उन्हें कौन संरक्षण दे रहा था?
पिछली घटनाओं से मिलती समानता
यह कोई पहली घटना नहीं। 2021 चुनाव के बाद बंगाल में करीब 80,000 हिंदुओं को अपना घर छोड़ना पड़ा था। संदेशखली में TMC नेता शहजहां शेख पर महिलाओं के साथ यौन शोषण और जबरन वसूली के गंभीर आरोप लगे थे, लेकिन कार्रवाई सिर्फ तब हुई जब मीडिया ने मुद्दा उठाया।
राजनीतिक चुप्पी और दोहरे मापदंड
जहां मणिपुर की घटनाओं पर कांग्रेस नेताओं ने आवाज़ उठाई, वहीं मुर्शिदाबाद पर सन्नाटा है। वही “धर्मनिरपेक्ष” वर्ग, जो शाहीन बाग और लखीमपुर में सड़कों पर उतरा था, आज गायब है।
क्या यह तुष्टीकरण की राजनीति का परिणाम है?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि वक्फ विधेयक को लेकर ममता बनर्जी के बयानों ने माहौल को भड़काया। उन्होंने खुलेआम कहा कि वह बंगाल में इसे लागू नहीं करेंगी। क्या यह बयान कानून के खिलाफ “सांप्रदायिक प्रतिरोध” को बढ़ावा नहीं देता?