भारत में हाल ही में पारित हुआ वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 न सिर्फ संसद में बहस का कारण बना, बल्कि देश के कई हिस्सों में विरोध-प्रदर्शनों और हिंसक झड़पों का भी सबब बन गया है। इस कानून के खिलाफ मुस्लिम समुदाय विशेष रूप से नाराज़ नजर आ रहा है, जिसे वे अपने धार्मिक और संवैधानिक अधिकारों पर हमला मान रहे हैं।
क्या है वक्फ संशोधन कानून और क्यों है विवाद?
इस संशोधन कानून में कई अहम बदलाव किए गए हैं, जिनमें सबसे ज्यादा विवादित हैं:
- गैर-मुस्लिमों की वक्फ बोर्ड में नियुक्ति:
अब गैर-मुस्लिम व्यक्ति भी वक्फ बोर्ड का सदस्य बन सकता है, जिससे मुस्लिम समाज में धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप का डर पैदा हो गया है। - सरकारी नियंत्रण में बढ़ोतरी:
ज़िला मजिस्ट्रेट को वक्फ संपत्तियों से जुड़े विवादों का निपटारा करने का अधिकार दे दिया गया है, जिससे ‘राजनीतिक दखल’ का खतरा जताया जा रहा है। - दस्तावेज़ आधारित व्यवस्था:
‘प्रयोग के आधार पर वक्फ’ यानी वर्षों से चली आ रही परंपराओं को मान्यता देने की प्रक्रिया अब ख़त्म हो गई है, जिससे कई ऐतिहासिक वक्फ संपत्तियाँ विवाद में आ सकती हैं।

राजनीतिक हंगामा और सड़क पर विरोध
- संसद में हंगामा और वॉकआउट:
कांग्रेस, टीएमसी, एआईएमआईएम और डीएमके जैसी विपक्षी पार्टियों ने इस बिल के खिलाफ ज़बरदस्त विरोध दर्ज किया और बिल को ‘असंवैधानिक’ बताया। - जंतर मंतर पर धरना:
दिल्ली में सैकड़ों लोगों ने जंतर मंतर पर इकट्ठा होकर शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया, जहाँ इसे ‘मुसलमानों के धार्मिक अधिकारों पर हमला’ बताया गया। - बंगाल में जमीयत-ए-उलमा का प्रदर्शन:
पश्चिम बंगाल में जमीयत-ए-उलमा और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस बिल को संविधान विरोधी बताया और ज़ोरदार विरोध किया।

मुर्शिदाबाद में हिंसा और तनाव
सबसे चिंताजनक स्थिति पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद ज़िले में सामने आई, जहाँ विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गया।
- तीन लोगों की मौत
- कई घायल, संपत्तियों को नुकसान
- इंटरनेट सेवा बंद और अर्धसैनिक बलों की तैनाती
स्थिति पर नियंत्रण पाने के लिए केंद्र ने विशेष सुरक्षा बल भेजे और हालात अब भी तनावपूर्ण हैं।
वक्फ संशोधन अधिनियम ने भारत में एक नए सामाजिक और राजनीतिक बहस को जन्म दे दिया है। एक तरफ सरकार इसे पारदर्शिता और नियंत्रण की दिशा में कदम बता रही है, तो दूसरी तरफ अल्पसंख्यक समुदाय इसे अपने अधिकारों पर हमले के रूप में देख रहा है।
अब देखने वाली बात ये है कि क्या सरकार संवाद का रास्ता अपनाएगी या टकराव और बढ़ेगा?