G7 सम्मेलन की पृष्ठभूमि
16 और 17 जून 2025 को कनाडा के कांनानास्किस, अल्बर्टा में आयोजित 51वें G7 सम्मेलन की शुरुआत हो चुकी है। इस वैश्विक मंच पर दुनिया के सात प्रमुख शक्तियों के नेताओं के साथ-साथ भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी आमंत्रित अतिथि के रूप में हिस्सा ले रहे हैं। यह उनका दस वर्ष में पहला G7 दौरा है, जिसका मुख्य फोकस वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन, डिजिटल बदलाव और मध्य पूर्व सहित वैश्विक सुरक्षा चुनौतियों पर रहा।
PM मोदी की बैठकें और उद्देश्य
कनाडा पहुंचने पर पीएम मोदी का स्वागत भारतीय डायस्पोरा और कनाडाई अधिकारियों ने पारंपरिक सम्मान के साथ किया।
मोदी की तालमेल-पूर्वक बातचीत में कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी, यूके, जर्मनी, इटली समेत अन्य G7 देशों के नेताओं के साथ द्विपक्षीय वार्ताएं शामिल हैं।
उनका उद्देश्य ग्लोबल साउथ के मुद्दों को रेखांकित करना, तकनीकी एवं ऊर्जा सहयोग बढ़ाना और विश्व में भारत की भागीदारी मजबूत करना है।
राजनयिक संतुलन और नई शुरुआत
यह सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है जब भारत-कनाडा संबंधों में तनाव की स्थिति थी, जिसमें खालिस्तानी समर्थकों ने कट्टर रूप रुख अपनाया था। हालांकि, इस G7 सम्मेलन में दोनों देशों ने वैश्विक मंच पर कूटनीतिक संबंधों को फिर से सक्रिय करने की प्राथमिकता दिखाई है।
भारत में मानसून: राहत और चुनौतियाँ
वहीं देश में मौसमी हालात भी बदल रहे हैं। भारतीय मौसम विभाग की जानकारी के अनुसार, दो हफ्तों की देरी के बाद धीरे-धीरे मानसून भारत में वापस लौटा है।
महाराष्ट्र, गुजरात व मध्य प्रदेश में भारी बारिश ने गर्मी से राहत दी और तापमान में तेज गिरावट दर्ज की गई है। खासकर गुजरात एवं महाराष्ट्र तट के इलाकों में और भी सीधी बारिश की संभावना बनी हुई है, जिससे सामान्य जीवन में सुधार की उम्मीद है।
इससे फसलों को पानी मिलेगा, ग्रामीण जल स्तर में सुधार होगा और लंबे समय से जारी गर्मी की स्थिति पर नियंत्रण बना रहेगा।
सम्मेलन और मौसम: दो पहलुओं में सामंजस्य
G7 में ऊर्जा, पर्यावरण और जलवायु दिशा-निर्देशों पर वैश्विक चर्चा हो रही है, वहीं भारत के ऊष्मा से राहत पाने के कदम बड़ा उदाहरण बने।
यह सामंजस्य यह दिखाता है कि एक स्पर्शक क्षेत्रीय बदलाव भी वैश्विक मंचों पर भारत की नीतियों और दृष्टिकोण को पुष्ट करता है।
निष्कर्ष
G7 सम्मेलन और भारत में मानसून दोनों ही घटनाएँ रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हैं—एक राजनीतिक कूटनीति और दूसरा सामाजिक-आर्थिक बदलाव का संकेत।
मोदी की विदेश यात्रा से वैश्विक मुद्दों पर भारत की भागीदारी मजबूत होगी, जबकि मानसून की वापसी ने कृषि और मानसून आधारित अर्थव्यवस्था को फिर से सक्रिय करने का संकेत दिया है।
देश के सामने यह समय सुरक्षितता, सहयोग और विकास की दिशा में अगला कदम निर्धारित करने का है।