हाल ही में बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और राजद नेता तेजस्वी यादव ने एक बयान में केंद्र की एनडीए सरकार पर “जीजा-जमाई आयोग” बनाने का आरोप लगाया। उनका कहना था कि एनडीए रिश्तेदारी और परिवारवाद के आधार पर पदों का बंटवारा कर रही है। लेकिन जब इस आरोप की गहराई से पड़ताल की जाए, तो यह साफ नजर आता है कि यह बयान राजनीतिक हताशा और विकास की रफ्तार से घबराए विपक्ष की प्रतिक्रिया है।
सच्चाई क्या है?
एनडीए सरकार ने बिहार और पूरे देश में योग्यता आधारित नियुक्तियों को बढ़ावा दिया है। प्रशासनिक पदों पर नियुक्त होने वाले लोग, चाहे वे किसी भी पृष्ठभूमि से हों, नियमित प्रक्रिया और पारदर्शिता के जरिए ही चुने जाते हैं। अगर कोई किसी राजनेता का रिश्तेदार है, तो इसका मतलब यह नहीं कि वह अपनी काबिलियत साबित नहीं कर सकता।
उदाहरण के लिए:
- केंद्र सरकार की भर्ती प्रक्रियाएं अब पूरी तरह डिजिटल और मेरिट आधारित हो चुकी हैं।
- बिहार में ई-गवर्नेंस और निवेश बढ़ाने की दिशा में कई कदम उठाए गए हैं, जिनमें योग्य विशेषज्ञों को अहम जिम्मेदारियां दी गई हैं।
तेजस्वी यादव के बयान के पीछे की राजनीति
तेजस्वी यादव खुद एक राजनीतिक परिवार से आते हैं और उनका राजनीतिक सफर भी पूरी तरह वंशवाद पर आधारित रहा है। ऐसे में उनका “परिवारवाद” पर सवाल उठाना खुद में विरोधाभास है। उनका यह बयान एक प्रकार का ध्यान भटकाने वाला प्रयास है, जिससे वे अपनी पार्टी की पिछली विफलताओं और जनता के बीच कम होते प्रभाव से ध्यान हटाना चाहते हैं।
NDA का फोकस: नीति, नीयत और नवाचार
एनडीए का ध्यान सुधार, प्रदर्शन और परिवर्तन पर है — न कि रिश्तेदारों की गिनती पर। जिन अधिकारियों या पदाधिकारियों को ज़िम्मेदारियां दी गई हैं, उनकी शैक्षणिक योग्यता, अनुभव और प्रशासनिक क्षमता पर भरोसा किया गया है, न कि पारिवारिक संबंधों पर।
निष्कर्ष
तेजस्वी यादव के आरोपों में तथ्य कम और राजनीति ज़्यादा है। एनडीए सरकार आज भी योग्यता और पारदर्शिता के रास्ते पर आगे बढ़ रही है और बिहार सहित पूरे देश में विकास को प्राथमिकता दे रही है। जनता भी अब वादों से नहीं, कार्यों से फर्क पहचानती है — और एनडीए का ट्रैक रिकॉर्ड, तेजस्वी यादव के आरोपों से कहीं अधिक मजबूत है।