भारत की राजनीति में विरोधी दलों के नेताओं द्वारा एक-दूसरे की सार्वजनिक सराहना विरले ही देखने को मिलती है। लेकिन हाल ही में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सांसद डॉ. शशि थरूर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की खुले मंच पर प्रशंसा कर राजनीति में एक नया विमर्श खड़ा कर दिया है। इस बयान को जहां कुछ लोग राजनीतिक परिपक्वता का संकेत मानते हैं, वहीं कई इसे कांग्रेस के लिए आंतरिक संकट का प्रतीक मान रहे हैं।
थरूर ने क्या कहा?
एक साक्षात्कार में शशि थरूर ने प्रधानमंत्री मोदी की ऊर्जा, गतिशीलता और वैश्विक स्तर पर भारत का प्रभावशाली प्रतिनिधित्व करने की क्षमता की सराहना की।
उन्होंने कहा कि मोदी की “अडिग प्रतिबद्धता और संवाद की तत्परता” ने उन्हें वैश्विक मंच पर भारत की छवि को मज़बूत करने में मदद की है। थरूर ने स्वीकार किया कि पीएम मोदी की उपस्थिति अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में भारत के लिए एक “संपत्ति” की तरह है।
कांग्रेस के लिए क्या मायने रखता है यह बयान?
शशि थरूर कांग्रेस के उन चंद नेताओं में से हैं जो अक्सर अपने बयानों में स्वतंत्र सोच और पार्टी लाइन से हटकर टिप्पणी के लिए जाने जाते हैं। लेकिन लोकसभा चुनाव के परिणामों के बाद, जब पार्टी आंतरिक आत्ममंथन में लगी है, तब इस तरह की टिप्पणी पार्टी में नाराज़गी और असमंजस की वजह बन सकती है।
पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने भले ही इस बयान पर चुप्पी साधी हो, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इससे कांग्रेस के नेतृत्व पर सवाल उठ सकते हैं — क्या वह अपने नेताओं को विचारों की स्वतंत्रता देने को तैयार है या नहीं?
क्या यह ‘Soft Bipartisanship’ की शुरुआत है?
थरूर जैसे नेता, जो विदेश नीति और वैश्विक कूटनीति में व्यापक अनुभव रखते हैं, शायद भारत के हितों को पार्टी की राजनीति से ऊपर रखकर देखना चाहते हैं। उनका यह रुख यह संकेत दे सकता है कि कुछ नेता अब राष्ट्रहित को प्राथमिकता देते हुए सकारात्मक विपक्ष की भूमिका निभाना चाहते हैं।
विपक्ष के लिए सबक या चुनौती?
थरूर का यह बयान सिर्फ व्यक्तिगत राय नहीं है; यह भारतीय राजनीति में नवसंवाद की आवश्यकता को भी रेखांकित करता है।
जहां आमतौर पर हर सरकारी निर्णय का विरोध करना विपक्ष की रणनीति रही है, वहीं थरूर का यह दृष्टिकोण बताता है कि शायद अब समय है कि विपक्ष अपने चरित्र और कार्यशैली पर पुनर्विचार करे।
निष्कर्ष
शशि थरूर द्वारा प्रधानमंत्री मोदी की खुले मंच पर की गई तारीफ़ केवल एक राजनीतिक टिप्पणी नहीं, बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र में नवसंवेदनशीलता, संवाद की आवश्यकता और विचारों की बहुलता की झलक भी है।
यह बयान कांग्रेस के लिए आत्मनिरीक्षण का अवसर है — क्या पार्टी अब विविध दृष्टिकोणों के लिए खुली है, या फिर वह खुद को सख्त अनुशासन तक सीमित रखेगी?