भारतीय जनता पार्टी (BJP) के राष्ट्रीय प्रवक्ता गौरव भाटिया ने RJD नेता तेजस्वी प्रसाद यादव को निशाने पर लिया है। भाटिया का आरोप है कि तेजस्वी यादव और उनकी पार्टी ‘शरिया कानून’ लागू करने की इच्छा रखते हैं, जिससे भारत के संविधान और सामाजिक तटस्थता को संकट में डाला जा रहा है।
आरोपों की थीम: शरिया बनाम संविधान
- BJP प्रवक्ता ने तीखा हमला करते हुए कहा: “वे तेजस्वी यादव और RJD के लोग शरिया लागू करना चाहते हैं, जबकि हम संविधान की रक्षा से पीछे नहीं हटेंगे।”
उन्होंने कहा कि तेजस्वी यादव ने संसद द्वारा पारित Waqf Amendment Act को गन्दे कूड़ेदान में फेंकने जैसा बताया है, जो संवैधानिक प्रक्रिया का अपमान है। - तेजस्वी के इस बयान को लेकर BJP ने उनका शिक्षा स्तर और राजनीतिक नैतिकता भी मुद्दा बनाया। भाटिया ने कहा कि किसी ऐसे व्यक्ति की आवाज़ को स्थान नहीं मिलना चाहिए, जो संसद द्वारा पारित कानूनों को खारिज करने का आह्वान करता है।
BJP की चिंता: अल्पसंख्यकों में विभाजन राजनीति
गौरव भाटिया का मानना है कि तेजस्वी की भाषा केवल वोट बैंक की राजनीति नहीं, बल्कि हिंदू-मुस्लिम विभाजन को बढ़ावा देने वाली सामूहिक विचारधारा को बल देती है।
उन्होंने सवाल उठाया:
“क्या तेजस्वी न्यायलय से ऊपर हुए जा चुके हैं? क्या वह शरिया कानून को संविधान की तुलना में अधिक मानते हैं?”
प्रदेश और राष्ट्रीय राजनीति के संदर्भ
- BJP ने तेजस्वी यादव को ‘नमाज़वादी’ करार दिया है, जो केवल एक समुदाय को सशक्त बनाने की इच्छा रखते हैं — यह देश में धर्म आधारित आरक्षण की दिशा पैदा कर सकता है जिसे BJP मान्य नहीं करेगी।
- जबकि BJP खुद को राष्ट्रहित और समावेशी संविधान की रक्षा करने वाला दल बताती है, वहीं RJD की राजनीतिक रणनीति को समाजवादी मूल्यों की जगह सीमित सांप्रदायिक हित तक बाँधने की कोशिश किया जा रहा है।
तेजस्वी यादव का विरोधी टकराव: राजनीतिक ग्राउंड तैयार
- तेजस्वी यादव ने पहले भी BJP नेतृत्व को कटघरे में खड़ा किया है, जैसे गोडसे समर्थन, दलित कथावाचकों का मुद्दा, और Operation Sindoor पर बयान।
- ऐसे बयान RJD की राजनीति की दिशा को सवालों में खड़ा करते हैं और BJP की तरफ से तेजस्वी पर लगातार हमला जारी है।
निष्कर्ष
गौरव भाटिया की आलोचना तेजस्वी यादव के उस बयान पर आधारित है जिसमें उन्होंने Waqf Amendment Act को लोकसभा पारित कानून कहने के बजाए अपमानजनक रूप में दर्शाया। BJP की चिंता है कि इस बयान से अल्पसंख्यकों के साथ एक विशेष समुदाय को सशक्त करने वाले सार्वजनिक एजेंडे को बढ़ावा मिल रहे हैं।
यह मनोवैज्ञानिक और राजनीतिक मुकाबला स्पष्ट रूप से 2025 बिहार विधानसभा चुनाव के दृष्टिकोण से अहम हो चुका है, जहां राष्ट्रीय संविधान बनाम सांप्रदायिक राजनीति का टकराव स्पष्ट तौर पर दिखाई दे रहा है।