हाल ही में महाराष्ट्र, विशेष रूप से मुंबई और ठाणे जैसे क्षेत्रों में, मराठी और हिंदी भाषा को लेकर विवाद ने एक हिंसक मोड़ ले लिया है। सरकार के स्कूलों में हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा बनाए जाने के निर्णय के बाद राजनीतिक दलों ने सड़कों पर उतरकर इसका विरोध शुरू किया। मनसे (महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना) और शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) इस विरोध में सबसे आगे रहे।
क्या है विवाद की जड़?
महाराष्ट्र सरकार ने कक्षा 1 से 3 तक हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाने का निर्णय लिया। इस कदम को मराठी अस्मिता के ख़िलाफ़ माना गया, और देखते ही देखते पूरे राज्य में विरोध-प्रदर्शन शुरू हो गए। खासतौर पर मनसे और शिवसेना (यूबीटी) ने इसे स्थानीय पहचान पर हमला बताया।
मारपीट की घटनाएं और हिंसक विरोध
मीरा रोड की घटना:
मनसे कार्यकर्ताओं ने ‘जोधपुर स्वीट्स एंड नमकीन’ नामक दुकान पर हिंदी में संवाद करने के कारण मिठाई दुकानदार बाबूलाल चौधरी पर हमला कर दिया। इस घटना का वीडियो वायरल हुआ और अगले ही दिन व्यापारियों ने बंद बुलाया और पुलिस से कार्रवाई की मांग की।
ठाणे स्टेशन की घटना:
ठाणे स्टेशन के बाहर भी एक व्यक्ति के साथ मोबाइल चार्जिंग को लेकर विवाद हुआ, लेकिन उसे भी मराठी बनाम हिंदी विवाद का रंग दे दिया गया। मारपीट करने वालों को पुलिस ने पकड़ा, लेकिन बाद में छोड़ दिया गया।
सुशील केडिया प्रकरण:
व्यापारी सुशील केडिया ने सोशल मीडिया पर राज ठाकरे के खिलाफ टिप्पणी की, जिसके बाद उनके कार्यालय पर पत्थरबाज़ी हुई। उन्हें माफ़ी भी मांगनी पड़ी।
राजनीतिक माहौल
राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे, वर्षों बाद एक मंच पर आए और मराठी भाषा के सम्मान के लिए संयुक्त रूप से रैली की। उन्होंने कहा कि वे किसी भाषा के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन मराठी के अपमान को बर्दाश्त नहीं करेंगे।
वहीं, शिंदे गुट ने शिक्षा के माध्यम से मराठी को बढ़ावा देने का प्रस्ताव रखा। उन्होंने घोषणा की कि मीरा-भायंदर में मराठी भाषा सिखाने के लिए मुफ्त क्लासेस चलाई जाएंगी।
मुख्यमंत्री फडणवीस की चेतावनी
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि मराठी भाषा का गौरव बनाए रखना ज़रूरी है, लेकिन यदि कोई गुंडागर्दी करता है, तो सरकार सख्त कार्रवाई करेगी। मराठी का अभिमान अपनी जगह है, लेकिन दूसरी भाषाओं के साथ अन्याय नहीं किया जा सकता।
व्यापारियों की चिंता
मुंबई और मीरा रोड के व्यापारिक समुदाय में भय का माहौल बन गया है। कारोबारी संगठन स्पष्ट रूप से कह रहे हैं कि भाषा के नाम पर किसी भी व्यापारी को धमकाना या पीटना असंवैधानिक है। उनका कहना है कि व्यापार के लिए मराठी जानना उचित है, लेकिन यह विवशता नहीं हो सकती।
सामाजिक और सांस्कृतिक संदेश
यह विवाद स्पष्ट करता है कि महाराष्ट्र की राजनीतिक दिशा में भाषा एक संवेदनशील मुद्दा है। मराठी को लेकर गर्व होना स्वाभाविक है, लेकिन हिंदी बोलने वालों या गैर-मराठी लोगों के साथ हिंसा समाज को तोड़ने का काम करती है।
निष्कर्ष
- राजनीति और भाषा को अलग रखना ज़रूरी है।
- शिक्षा और संवाद से मराठी को बढ़ावा दिया जाए, डर से नहीं।
- सरकार को कानून के तहत सभी नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए।
- व्यापारिक समुदाय के लिए सुरक्षित माहौल प्राथमिकता होनी चाहिए।
भाषा को राजनीति का हथियार नहीं, बल्कि संस्कृति और सहिष्णुता का पुल बनना चाहिए।