भारत सरकार ने हाल ही में घोषणा की है कि आगामी जनगणना में नागरिकों की जातिगत जानकारी भी एकत्र की जाएगी। यह निर्णय देश की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संरचना में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकता है।
जाति जनगणना का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
भारत में पिछली बार पूर्ण जाति जनगणना 1931 में हुई थी। इसके बाद से केवल अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के आंकड़े ही आधिकारिक रूप से एकत्र किए गए हैं। अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और सामान्य वर्ग की जातियों के बारे में कोई विस्तृत सरकारी डेटा उपलब्ध नहीं है। इससे सामाजिक योजनाओं और आरक्षण नीतियों के प्रभावी क्रियान्वयन में बाधा आती रही है।
बिहार और कर्नाटक के जाति सर्वेक्षण
हाल के वर्षों में, बिहार और कर्नाटक जैसे राज्यों ने अपने स्तर पर जाति सर्वेक्षण किए हैं। बिहार के 2022 के सर्वेक्षण के अनुसार, राज्य की कुल जनसंख्या में से 36.01% अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC), 27.12% पिछड़ा वर्ग (OBC), 19.65% अनुसूचित जाति (SC), 1.68% अनुसूचित जनजाति (ST) और 15.52% सामान्य वर्ग के लोग हैं। इन आंकड़ों ने सामाजिक न्याय की नीतियों में सुधार की आवश्यकता को उजागर किया है।
आगामी जाति जनगणना के संभावित प्रभाव
- आरक्षण नीतियों में सुधार: सटीक जातिगत आंकड़ों के आधार पर आरक्षण की वर्तमान 50% सीमा पर पुनर्विचार किया जा सकता है।
- सामाजिक योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन: वास्तविक आंकड़ों के आधार पर योजनाओं को लक्षित करना संभव होगा, जिससे वंचित वर्गों को अधिक लाभ मिल सकेगा।
- राजनीतिक समीकरणों में बदलाव: जातिगत आंकड़ों के प्रकाशन से राजनीतिक दलों की रणनीतियों में बदलाव आ सकता है, विशेषकर चुनावी गठबंधनों और उम्मीदवार चयन में।
चुनौतियाँ और चिंताएँ
- सामाजिक तनाव की आशंका: जातिगत आंकड़ों के प्रकाशन से विभिन्न समुदायों में असंतोष और तनाव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
- डेटा की गोपनीयता और दुरुपयोग: जातिगत जानकारी के दुरुपयोग की संभावना को देखते हुए डेटा सुरक्षा एक महत्वपूर्ण मुद्दा है।
- प्रशासनिक जटिलताएँ: जातिगत डेटा एकत्र करने और उसका विश्लेषण करने में प्रशासन को कई तकनीकी और लॉजिस्टिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
जाति जनगणना का निर्णय भारत के सामाजिक ताने-बाने में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। यह कदम सामाजिक न्याय, समानता और समावेशिता की दिशा में एक सकारात्मक पहल है। हालांकि, इसके सफल क्रियान्वयन के लिए सरकार को पारदर्शिता, संवेदनशीलता और प्रभावी योजना की आवश्यकता होगी।