📊 क्या कहा CM हिमंता ने?
- असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्व सरमा ने कहा कि अगर वर्तमान जनसंख्या वृद्धि की गति बनी रही, तो 2041 तक असम में मुस्लिम आबादी हिंदुओं के बराबर हो जाएगी।
- 2011 की जनगणना के अनुसार, मुस्लिम आबादी राज्य में लगभग 34% थी, जिसमें 31% प्रवासी और केवल 3% स्वदेशी मुस्लिम थे।
- उन्होंने स्पष्ट किया: “यह मेरा दावा नहीं, आंकड़ों का परिणाम है।”
📈 जनसांख्यिकीय रुझान और कारण
- 1961–2011 के बीच असम के हिंदू समुदाय का अनुपात गिरकर लगभग 61.5% रह गया, जबकि मुस्लिम समुदाय का आंकड़ा 34.2% था।
- कुछ विश्लेषकों का कहना है कि मुस्लिम आबादी सालाना लगभग 29–30% बढ़ रही है, जबकि हिंदुओं की वृद्धि दर सिर्फ 16% है, जिससे भविष्य में आबादी का संतुलन बिगड़ सकता है।
🧭 सियासी और सामाजिक पहलू
- सरमा ने इसे सीमांत घुसपैठ और सांस्कृतिक पहचान के मुद्दे से जोड़ा, यह कहते हुए कि प्रवासी समस्या का असर असम की पहचान पर पड़ रहा है।
- उन्होंने अदमालीकरण अभियानों को जारी रखने की बात कही: “अगर यह क्रम नहीं रुकता तो अरबों एकड़ अवैध रूप से खनन हो रहे हैं।”
- बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने इस बयान की आलोचना की और इसे भाषा-आधारित विभाजन बताया।
⚠️ संभावित खतरों और चुनौतियों
- पहचान संकट: स्वदेशी और असमिया पहचान जोखिम में पड़ती दिख रही है।
- आर्थिक एवं सामाजिक दबाव: संसाधनों पर बढ़ता भार—जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, बुनियादी सुविधाएं।
- राजनीतिक मुकाबला: यह मुद्दा आगामी चुनावों में सांप्रदायिक रेखाओं पर लड़े जाने की सम्भावना रखता है।
- सांस्कृतिक तनाव: धीमी मगर सुसंगत जनसंख्या परिवर्तन का सामना सामूहिक सह-अस्तित्व की चुनौतियों के तौर पर सामने आ सकता है।
🔍 अगर आज़ादी और सहयोग पर जोर दिया जाए
- शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के क्षेत्रों में विकासात्मक रणनीति अपनाई जाए, तो सामाजिक संतुलन बना रह सकता है।
- प्रवासन नियंत्रण, पहचान सत्यापन और संविधानिक नीति-निर्माण इस इलाके की सफलता में योगदान कर सकते हैं।
- सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देने वाले सामाजिक-राजनीतिक कार्यक्रमों की भूमिका महत्वपूर्ण बनती जा रही है।
📝 निष्कर्ष
सीएम हिमंता बिस्व सरमा का यह बयान जनसंख्या, पहचान और राज्य की सांस्कृतिक धरोहर पर चिंता जताता है। जब तक यह मुद्दा सांप्रदायिक रेखा से ऊपर उठकर सामूहिक विकास और सामाजिक व्यवहार की समस्याओं पर केंद्रित नहीं होगा, तब तक यह विवाद जारी रहेगा।
असम की अगली दिशा—क्या यह संवेदनशील राजनीतिक रणनीति का मुकाबला झेलेगा, या सामाजिक एकजुटता के आधार पर आगे बढ़ेगा?