मध्यप्रदेश के इंदौर में एक दर्दनाक मामला सामने आया है जहाँ एक 3 साल की बच्ची की संथारा (अनशन) के बाद मौत हो गई। इस घटना ने देशभर में आक्रोश पैदा कर दिया है। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने मामले का संज्ञान लेते हुए जांच के निर्देश जारी किए हैं।
घटना का विवरण:
बताया जा रहा है कि यह मामला जैन समाज से जुड़ा है, जहाँ परंपरा के अनुसार ‘संथारा’ या ‘सल्लेखना’ की जाती है — जिसमें व्यक्ति भोजन और पानी त्यागकर मृत्यु की ओर बढ़ता है। लेकिन इस बार यह परंपरा एक मासूम बच्ची के साथ निभाई गई, जिससे उसकी मौत हो गई।
स्थानीय सूत्रों के अनुसार, बच्ची कुछ समय से भोजन नहीं ले रही थी, और बताया गया कि उसने संथारा धारण किया था। यह सुनकर पूरे इलाके में सनसनी फैल गई।
बाल आयोग की प्रतिक्रिया:
NCPCR ने इस घटना को गंभीरता से लेते हुए मध्यप्रदेश के कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक से रिपोर्ट मांगी है। आयोग ने यह भी कहा है कि अगर बच्ची को संथारा के लिए प्रेरित या बाध्य किया गया है, तो यह बाल संरक्षण कानूनों के घोर उल्लंघन के अंतर्गत आएगा।
सामाजिक और कानूनी सवाल:
यह मामला अब सामाजिक परंपराओं और बच्चों के अधिकारों के बीच टकराव का प्रतीक बन गया है। एक तरफ धार्मिक आस्थाएँ हैं, तो दूसरी ओर एक मासूम के जीवन और अधिकार का सवाल है। क्या इतनी छोटी उम्र में कोई बच्चा वास्तव में अपनी मर्जी से संथारा ले सकता है?
आगे की कार्रवाई:
फिलहाल, जांच जारी है और आयोग ने स्पष्ट किया है कि दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। इस मामले से यह सवाल भी उठता है कि बच्चों को धार्मिक परंपराओं में किस हद तक शामिल किया जाना चाहिए।
इंदौर की यह घटना समाज, प्रशासन और न्याय प्रणाली के लिए एक चेतावनी है कि धार्मिक परंपराओं की आड़ में बच्चों के मौलिक अधिकारों का हनन न हो। यह समय है जब समाज को अपने मूल्यों की समीक्षा करनी चाहिए और बच्चों की सुरक्षा को सर्वोपरि रखा जाए।