9 जुलाई 2025 को दस केंद्रीय ट्रेड यूनियनों एवं किसान और ग्रामीण श्रमिक संगठनों ने एक देशव्यापी भारत बंद का आह्वान किया। इस बंद में झारखंड के बैंक कर्मचारियों, कोयला खदान कर्मियों, सरकारी एवं निजी उद्योगों के श्रमिक सक्रिय रूप से शामिल हुए। इससे राज्य में सरकारी सेवाएं और जीवन-सामान्य गतिविधियाँ बाधित हुईं।
🧭 कौन शामिल हुआ – प्रमुख सहभागी श्रमिक वर्ग
- बैंकिंग, बीमा और डाक सेवाओं के कर्मचारियों ने काम छोड़ने की घोषणा की।
- कोयला खदानों के श्रमिकों ने हड़ताल का समर्थन किया और काम बंद रखा।
- आंगनबाड़ी सेविकाएं, बीड़ी-कर्मचारी, परिवहन सेवाओं के लोग, स्टील और बॉक्साइट उद्योग के मजदूर भी शामिल हुए।
यह एक व्यापक प्रदर्शन था जो बैंकिंग से लेकर कोयला खदानों तक अनेक क्षेत्रों को छू गया।
🛠️ प्रमुख मांगें – 17-सूत्रीय मांग पत्रिका
बंदियों द्वारा रखी गई मुख्य मांगों में शामिल हैं:
- चारों श्रम संहिताओं को रद्द करना
- न्यूनतम वेतन ₹26,000 एवं न्यूनतम पेंशन ₹9,000 सुनिश्चित करना
- पुरानी पेंशन योजना को बहाल करना
- सार्वजनिक क्षेत्र इकाइयों का निजीकरण रोकना
- यूनियन बनाने और सामूहिक सौदेबाजी के अधिकार की रक्षा
- किसान संगठनों की एमएसपी मांगों और ऋण माफी की भी वकालत की गई।
📌 झारखंड में प्रभाव: क्या-क्या बंद हुआ?
- बैंकिंग, बीमा, डाक सेवाएं और परिवहन प्रणाली प्रभावित रही।
- कोयला खदानें और राज्य के कुछ सार्वजनिक उपक्रमों में काम रोका गया।
- स्कूल और कॉलेज का संचालन सीमित रहा—कुछ निजी संस्थानों ने खुले रहने का निर्णय लिया।
- आपातकालीन सेवाएं जैसे अस्पताल, एम्बुलेंस, मेडिकल और अधिकारियों की गतिविधियां प्रभावित नहीं हुईं।
रांची में मशाल जुलूस निकालकर आंदोलन को समर्थन दिया गया, जबकि गेट मीटिंग के ज़रिए श्रमिकों को आंदोलन में जोड़ा गया।
🧱 प्रशासनिक चुनौतियाँ और सुरक्षा पहल
- झारखंड में निषेधात्मक आदेश लागू किए गए और भारी पुलिस सुरक्षा की व्यवस्था की गई।
- प्रदर्शन स्थलों पर शांतिपूर्ण प्रदर्शन बनाए रखने को प्रशासन और स्थानीय पुलिस सतर्क रही।
- कोयला खदानों में कामकाज पर प्रभाव का आकलन किया जा रहा है, जबकि कुछ स्टील इकाइयों ने बताया कि कार्य सामान्य रूप से जारी है।
🌾 देश स्तर पर व्यापक प्रभाव
बंद में लगभग 25 करोड़ कार्यकर्ता शामिल हुए—बैंक, परिवहन, खदान, निर्माण और सार्वजनिक सेवाएं इस आंदोलन के केंद्र में रहीं। इसके कारण पूरे देश में सेवाओं में व्यापक कटौती हुई, जबकि कुछ निजी संस्थान और आपात सेवाएं संचालन जारी रखीं।
🧭 निष्कर्ष: दर्द या परिवर्तन?
भारत बंद झारखंड में एक महत्वपूर्ण संकेत बना कि राज्य में श्रमिक और किसान संगठनों की मांगें कितनी गंभीर हैं।
इसने स्पष्ट किया कि वर्तमान सरकारी नीतियाँ श्रमिक और किसान विरोधी मानी जा रही हैं, और उनका विरोध स्तर उठ चुका है। सरकार और ट्रेड यूनियनों के बीच वार्ता की आवश्यकता अब पहले से कहीं अधिक महसूस की जा रही है।
इस बंद की गूंज केवल आवाज़ें नहीं, बल्कि एक राजनीतिक और आर्थिक चेतना का भी आईना बन गई है।