हिमाचल में मानसून त्रासदी: मंडी जिले में बादल फटने से तबाही, दर्जनों की मौत और संपत्ति बर्बाद

30 जून 2025 की रात हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में प्रकृति का तांडव देखने को मिला। भारी बारिश और बादल फटने की घटनाओं ने थुनाग, देजी, लाम और जुर्ह जैसे इलाकों को बुरी तरह प्रभावित किया। पूरा इलाका एक आपदा क्षेत्र में बदल गया, जहां घर, सड़कें, पुल और जीवन—सब कुछ पानी में बह गया।


🧨 तबाही के आंकड़े और मानवीय नुकसान

  • अब तक 69 से अधिक लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है।
  • लगभग 37 लोग अब भी लापता हैं और 110 से अधिक घायल बताए जा रहे हैं।
  • भारी बारिश और भूस्खलन के कारण 200 से अधिक इमारतें और कई सड़कें पूरी तरह नष्ट हो गईं।
  • राज्य सरकार के शुरुआती आकलन के अनुसार, आर्थिक नुकसान ₹700 करोड़ से अधिक हो सकता है।

🚨 बचाव कार्य और राहत प्रयास

  • राज्य आपदा प्रबंधन बल (SDRF), राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (NDRF), सेना और वायुसेना ने युद्धस्तर पर बचाव कार्य शुरू किया।
  • प्रभावित क्षेत्रों में हेलीकॉप्टर के ज़रिए राहत सामग्री और खाद्य पैकेट्स पहुँचाए गए।
  • कई गाँवों में फंसे लोगों को सुरक्षित बाहर निकाला गया और राहत शिविरों में शरण दी गई।

🏛️ मुख्यमंत्री की प्रतिक्रिया और सरकारी घोषणाएं

  • मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने इस त्रासदी को “युद्ध जैसी स्थिति” बताया।
  • प्रभावित परिवारों को ₹5,000 प्रति माह किराया सहायता देने की घोषणा की गई।
  • मवेशियों की हानि, मकानों की क्षति और व्यवसायिक ढांचे को हुए नुकसान के लिए विशेष राहत पैकेज घोषित किया गया।

☔ मौसम चेतावनी और भविष्य की आशंका

  • मौसम विभाग ने मंडी, सोलन, सिरमौर, कांगड़ा आदि जिलों के लिए रेड अलर्ट जारी किया है।
  • अगले कुछ दिनों में फिर से भारी बारिश और बादल फटने की संभावना जताई गई है, जिससे स्थिति और गंभीर हो सकती है।

🔍 संरचनात्मक खतरे और पुनर्निर्माण की चुनौती

  • कई जगहों पर भूस्खलन से बिजली और संचार व्यवस्था पूरी तरह ठप हो गई है।
  • दूरदराज़ गाँवों से संपर्क टूट चुका है और अब राहत पहुंचाना भी एक चुनौती बन गया है।
  • प्रशासन को पुनर्निर्माण के लिए जल्द ही व्यापक योजना और स्थायी समाधान अपनाने होंगे।

🏅 निष्कर्ष

हिमाचल प्रदेश की यह त्रासदी न सिर्फ़ प्राकृतिक आपदा है, बल्कि यह हमारी पर्वतीय संरचनाओं की संवेदनशीलता और बुनियादी तैयारी की भी परीक्षा है। प्रशासन की तत्परता ने कई लोगों की जान बचाई, लेकिन इस आपदा ने यह भी साफ़ कर दिया कि भविष्य में ऐसे हादसों को रोकने के लिए स्थायी संरचनात्मक और पर्यावरणीय रणनीतियों की जरूरत है।