सुप्रीम कोर्ट ने 23 मई 2025 को एक ऐतिहासिक निर्णय में स्पष्ट किया कि मातृत्व अवकाश (Maternity Leave) महिलाओं के प्रजनन अधिकारों का अभिन्न हिस्सा है और इसे नकारा नहीं जा सकता। यह फैसला तमिलनाडु की एक महिला सरकारी शिक्षक की याचिका पर सुनाया गया, जिसे दूसरी शादी से संतान होने के बाद मातृत्व अवकाश देने से इनकार कर दिया गया था। आज तक
मामला क्या था?
तमिलनाडु की एक महिला शिक्षक ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें बताया गया कि उसकी पहली शादी से दो बच्चे हैं, लेकिन उसने उनके लिए कभी मातृत्व अवकाश नहीं लिया। दूसरी शादी के बाद जब उसने संतान को जन्म दिया, तो उसे मातृत्व अवकाश देने से यह कहकर इनकार कर दिया गया कि राज्य के नियमों के अनुसार मातृत्व लाभ केवल पहले दो बच्चों के लिए ही उपलब्ध हैं। आज तक
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि मातृत्व अवकाश महिलाओं का मौलिक अधिकार है और इसे किसी भी परिस्थिति में नकारा नहीं जा सकता। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी महिला को उसके मातृत्व अवकाश के अधिकार से वंचित करना उसके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। आज तक
मातृत्व लाभ अधिनियम, 2017
भारत में मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 को 2017 में संशोधित किया गया था, जिसके तहत मातृत्व अवकाश की अवधि 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह कर दी गई थी। यह अधिनियम सभी संगठनों पर लागू होता है जहाँ 10 या उससे अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं। इसके अलावा, गोद लेने वाली माताओं को भी 12 सप्ताह का मातृत्व अवकाश प्रदान किया जाता है। India Today+2आज तक+2Wikipedia+2Wikipedia+1India Today+1
मातृत्व अवकाश का महत्व
मातृत्व अवकाश न केवल महिलाओं के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए आवश्यक है, बल्कि यह शिशु की देखभाल और परिवार के समग्र विकास के लिए भी महत्वपूर्ण है। यह निर्णय कार्यस्थलों पर महिलाओं के अधिकारों को सशक्त बनाने और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला महिलाओं के प्रजनन अधिकारों की सुरक्षा और कार्यस्थलों पर लैंगिक समानता सुनिश्चित करने की दिशा में एक मील का पत्थर है। यह निर्णय न केवल तमिलनाडु की महिला शिक्षक के लिए न्याय सुनिश्चित करता है, बल्कि देश भर की महिलाओं के लिए भी एक सकारात्मक संदेश देता है कि उनके अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायपालिका प्रतिबद्ध है।