​मोदी सरकार की कैबिनेट बैठक में जाति जनगणना पर विचार: सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम?

30 अप्रैल 2025 को भारत सरकार की कैबिनेट बैठक में जनगणना में जाति आधारित डेटा शामिल करने पर विचार किया गया। हालांकि, इस पर अंतिम निर्णय की घोषणा नहीं की गई है। यह कदम देश में सामाजिक न्याय और समावेशी विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल माना जा रहा है।​


पृष्ठभूमि: जनगणना और जाति डेटा की आवश्यकता

भारत में जनगणना हर दस वर्षों में होती है, लेकिन 2021 की जनगणना COVID-19 महामारी और तकनीकी चुनौतियों के कारण स्थगित हो गई थी। अब, सरकार 2025 की शुरुआत में जनगणना शुरू करने की योजना बना रही है। इस बार, जाति आधारित डेटा को शामिल करने पर विचार किया जा रहा है, जिससे सामाजिक योजनाओं को अधिक प्रभावी ढंग से लागू किया जा सके।​


राजनीतिक प्रतिक्रिया और समर्थन

विपक्षी दलों, विशेष रूप से कांग्रेस, ने लंबे समय से जाति जनगणना की मांग की है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर जाति जनगणना की आवश्यकता पर जोर दिया है। उन्होंने कहा कि “एक अद्यतन जाति जनगणना के अभाव में, सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण कार्यक्रमों के लिए आवश्यक विश्वसनीय डेटा अधूरा है” ।​

इसके अलावा, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने भी जाति जनगणना के समर्थन में बयान दिए हैं। स्टालिन ने कहा कि “जाति जनगणना को राष्ट्रीय जनगणना के साथ एकीकृत करना चाहिए ताकि समाज की जातीय संरचना और सामाजिक-आर्थिक संकेतकों पर विश्वसनीय डेटा प्राप्त हो सके” ।​Live HindustanThe Times of India


सामाजिक न्याय और नीति निर्माण में प्रभाव

जाति जनगणना से प्राप्त डेटा सरकार को विभिन्न सामाजिक समूहों की वास्तविक स्थिति को समझने में मदद करेगा। यह डेटा नीतियों के निर्माण और संसाधनों के वितरण में अधिक पारदर्शिता और न्याय सुनिश्चित करेगा।​


निष्कर्ष

जाति जनगणना पर विचार करना भारत में सामाजिक न्याय और समावेशी विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। हालांकि, इसके सफल कार्यान्वयन के लिए सरकार को सभी हितधारकों के साथ समन्वय स्थापित करना होगा और डेटा संग्रहण की प्रक्रिया को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाना होगा।