🤔 किसी एक दिन नहीं—मायाजाल महीनों से रचा जा रहा था
जगदीप धनखड़ का अचानक इस्तीफा केवल स्वास्थ्य कारणों पर आधारित नहीं समझ में आता। यह झड़प लंबे समय से केंद्र के साथ चल रही थी—विशेष रूप से जस्टिस वर्मा पर महाभियोग प्रस्ताव के मद्देनजर, मामला अंतिम बूँद साबित हुआ।
⚖️ वर्मा महाभियोग प्रस्ताव – अंतिम टकराव
धनखड़ ने बिना सरकार को सूचित किए, विपक्षीय सांसदों का समर्थन स्वीकार कर वर्मा पर महाभियोग प्रस्ताव को मंजूरी दी।
इससे केंद्र नाराज़ था क्योंकि उसकी योजना पहले लोकसभा में प्रस्ताव लाकर इसे “राजदीय प्रक्रिया” के तहत आगे बढ़ाने की थी।
तीन बार सरकारी स्तर से उन्हें इसे वापस लेने को कहा गया—लेकिन उन्होंने नहीं माना।
🕒 आज का संकट — 1‑4:30 बजे का महत्व
उस दिन दोपहर की BAC बैठक में जे.पी. नड्डा और किरेन रिजिजू ध्यान नहीं दे पाए। राज्यसभा की दूसरी बैठक में उपराष्ट्रपति चुप रहे—इन दृश्यों को विपक्ष “सम्मान का अपमान” मानते हुए गंभीर संकेत मानता है।
🚗 स्वास्थ्य या रणनीति?
धनखड़ ने इस्तीफा स्वास्थ्य के नाम पर दिया, लेकिन सरकारी मंत्री–मंचों पर उनसे तीन बार चर्चा हो लेने के बाद भी इसी एक्शन में उन्होंने राजनैतिक असहमतियों को स्वास्थ्य कारण के पीछे छिपाया – आरोप यही लगता है।
🧩 गहरी दरार — केंद्र बनाम संविधान संस्थाएं
विश्लेषकों के अनुसार—यह फर्क सिर्फ सत्ता का आंतरिक विवाद नहीं, बल्कि संवैधानिक संस्थाओं पर बढ़ते नियंत्रण का संकेत है।
धनखड़ ने संसद में विपक्ष को उपलब्ध विधानसभा वक्ता की तरह माहौल देने का कार्य किया, और इसके बाद सत्ता में असंतोष उभरा—जिन्होंने यह “सियासी दबाव” का हिस्सा बताया।
📝 निष्कर्ष
- स्वास्थ्य बहाना था, लेकिन असहमति की चिंगारी बहस की वजह बनी।
- प्रक्रिया और संप्रभुता की लड़ाई—क्या संसद में चेयर की स्वतंत्रता बनी रहगी या सत्ता निर्देशित होगी?
- संविधान और राजनीति का भविष्य—क्या उपराष्ट्रपति ऐसी स्थिति में रह सकते हैं, जहां आरोप लगते हों कि उन्होंने सरकार को बिना बताए बड़ी कार्रवाई की?
धनखड़ का इस्तीफा एक संकेत है कि सत्ता और संवैधानिक संरचनाओं के बीच अभी लंबा खिंचाव बाकी है।