रूस के पूर्व राष्ट्रपति और सुरक्षा परिषद के उपाध्यक्ष दिमित्री मेदवेदेव ने हाल ही में एक विवादास्पद बयान दिया है। उन्होंने कहा कि अमेरिका द्वारा ईरान के न्यूक्लियर ठिकानों पर किए गए हमलों के जवाब में अब “कई देश” ईरान को परमाणु हथियार देने को तैयार हैं। उनका दावा है कि अमेरिका ने एक नया युद्ध छेड़ दिया है और इस कदम से वैश्विक संतुलन को खतरा हो सकता है।
विशेषज्ञों के अनुसार, यह दावा न केवल अतिरंजित है बल्कि तकनीकी और कूटनीतिक रूप से भी अव्यावहारिक है। परमाणु हथियारों का हस्तांतरण अंतरराष्ट्रीय कानूनों और परमाणु अप्रसार संधि (NPT) के तहत सख्त रूप से प्रतिबंधित है। किसी देश द्वारा ऐसे हथियार सीधे तौर पर सौंपना एक वैश्विक संकट को जन्म दे सकता है।
हालांकि इस बयान के बाद कुछ लोगों ने यह अनुमान लगाया कि रूस, चीन या उत्तर कोरिया जैसे देश ईरान को समर्थन दे सकते हैं, लेकिन इस पर कोई ठोस प्रमाण नहीं है। इन देशों के लिए भी ऐसा कदम विश्व मंच पर उनकी वैधता को चुनौती में डाल सकता है।
राजनीतिक विश्लेषक इस बयान को एक प्रकार की रणनीतिक चेतावनी मानते हैं। उनका कहना है कि रूस इस वक्त पश्चिमी देशों और अमेरिका को घेरने के लिए ऐसे बयानों का इस्तेमाल कर रहा है ताकि तनाव और भ्रम का माहौल बने। यह यूक्रेन युद्ध, ईरान-अमेरिका तनाव और वैश्विक राजनीति की जटिलताओं से जुड़ा एक और अध्याय बन गया है।
इस घटनाक्रम पर दुनिया भर से प्रतिक्रियाएं आई हैं। रूस और चीन ने अमेरिका की कार्रवाई की निंदा की है और ईरान के साथ खड़े होने की बात कही है। वहीं, यूक्रेन और अन्य पश्चिमी देश इस बयान को गंभीरता से लेते हुए ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर और निगरानी की मांग कर रहे हैं।
भारत जैसे ऊर्जा-निर्भर देश भी इस तनाव पर नजर बनाए हुए हैं, क्योंकि मध्य-पूर्व की स्थिरता का सीधा असर वैश्विक तेल कीमतों और आपूर्ति पर पड़ता है।
निष्कर्ष
मेदवेदेव का यह बयान फिलहाल राजनीतिक दबाव बनाने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि ऐसी टिप्पणियां वैश्विक स्थिरता को कमजोर कर सकती हैं। ईरान का परमाणु कार्यक्रम पहले से ही अंतरराष्ट्रीय चिंता का विषय रहा है, और यदि इस तरह की बयानबाज़ी बढ़ती है, तो दुनिया एक नए संकट की ओर बढ़ सकती है।