भारतीय विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने 3 जुलाई 2025 को वॉशिंगटन में एक प्रेस वार्ता में कहा कि अमेरिका में पेश किए गए उस बिल को लेकर भारत सजग है जिसमें रूस से तेल, गैस और यूरेनियम जैसे उत्पाद खरीदने वाले देशों पर 500% टैरिफ लगाने का प्रस्ताव है।
यह बिल भारत की ऊर्जा सुरक्षा और विदेश नीति पर प्रत्यक्ष प्रभाव डाल सकता है।
🔍 प्रस्तावित बिल की विशेषताएँ और अमेरिकी रुख
- यह प्रस्ताव अमेरिकी सीनेटर लिंडसे ग्राहम द्वारा पेश किया गया है।
- इसमें स्पष्ट रूप से भारत और चीन जैसे देशों का नाम लिया गया है क्योंकि वे रूस से कच्चे तेल के प्रमुख खरीदार हैं।
- पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी इस बिल का समर्थन कर चुके हैं, जिससे इसके पारित होने की संभावना और प्रबल हो गई है।
🇮🇳 भारत की चिंता और बातचीत की रणनीति
- विदेश मंत्री ने स्पष्ट किया कि भारत की ओर से अमेरिकी नेतृत्व को यह बता दिया गया है कि रूस से आयात भारत की ऊर्जा जरूरतों के लिए अनिवार्य है।
- जयशंकर ने कहा: “हमने अपना पक्ष उन्हें स्पष्ट कर दिया है। अब देखना होगा कि आवश्यकता आने पर हम उस पुल को कैसे पार करते हैं।”
📉 भारत पर संभावित असर
- यदि यह बिल पारित होता है, तो अमेरिका में भारतीय उत्पादों पर भारी शुल्क लग सकता है।
- यह ऐसे समय में हो रहा है जब भारत और अमेरिका के बीच एक व्यापार समझौता प्रगति पर है, जो टैरिफ से राहत दिला सकता है।
- इस स्थिति से भारत के निर्यात और ऊर्जा लागत दोनों पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।
🛢️ रूस से भारत का तेल आयात
- भारत वर्तमान में अपनी ऊर्जा ज़रूरतों का लगभग 40–45% रूस से आयात करता है।
- मई 2025 में, भारत ने रिकॉर्ड स्तर पर 1.96 मिलियन बैरल प्रतिदिन तेल रूस से आयात किया।
- रशियन तेल की रियायती दरों के चलते भारत ने पारंपरिक सप्लायर्स की तुलना में रूस को प्राथमिकता दी।
निष्कर्ष
हालांकि अमेरिकी बिल अभी केवल प्रस्तावित है, लेकिन यह संकेत साफ है कि अमेरिका रूस से व्यापार करने वाले देशों पर दबाव बना रहा है।
भारत का रुख संतुलित और व्यावहारिक है — जयशंकर ने जहां संवाद का रास्ता खुला रखा है, वहीं राष्ट्रीय हितों की रक्षा का भी वादा किया है।
आने वाले समय में यह देखना अहम होगा कि भारत इस अंतरराष्ट्रीय चुनौती से किस तरह निपटता है — ऊर्जा सुरक्षा, वैश्विक रिश्तों और आर्थिक हितों के बीच संतुलन बनाते हुए।