📌 मामले का संक्षिप्त परिचय
एक MBA महिला, जिसकी शादी मात्र 18 महीने तक चली, उसने अपने पूर्व पति से एकमुश्त 12 करोड़ रुपये की अलिमनी, मुम्बई में फ्लैट और एक BMW कार की मांग की। महिला ने बताया कि पति बहुत संपन्न है और उस पर मानसिक स्वास्थ्य संबंधित FIR दर्ज होने से वह नौकरी खो चुकी है।
👨⚖️ CJI BR गवैया का जोरदार रुख
चीफ जस्टिस गवैया ने इस मांग को अत्यधिक बताया और टिप्पणी की:
- “इतनी पढ़ी‑लिखी हो, क्यों मांगो? खुद कमाओ और अपनी आजीविका चलाओ।”
- “सिर्फ 18 महीने की शादी हुई थी, और अब BMW की मांग भी? हर महीने करोड़ी चाह रहे हो।”
न्यायालय ने सुझाव दिया कि महिला अपना क्लाइमेटेड फ्लैट रखे या 4 करोड़ के पैकेज पर काम करे—और यदि चाहे तो नौकरी भी कर सकती है।
💼 महिला का संरक्षण: क्या वस्तुनिष्ठ था?
महिला ने कहा कि उसके पूर्व पति ने उसे नौकरी छोडने पर मजबूर किया, और FIR की वजह से उसे और नौकरी नहीं मिली। अदालत ने कहा कि अगर आधार ‘mental health FIR’ है तो उसे रद्द करवाने की दिशा निर्देश दिए जाएंगे।
⚖️ अलिमनी कानून और न्यायालय की भूमिका
- हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 25 के तहत अलिमनी का लाभ आर्थिक रूप से कमजोर या असहाय पक्ष को दिया जाता है, जिससे उसका जीवन स्तर बनाए रखा जा सके।
- सुप्रीम कोर्ट ने बल दिया कि अलिमनी मांग तब तक उचित मानी जाएगी जब तक वह “जहाँ जरूरी हो आर्थिक निर्भरता दूर करने के लिए” हो — न कि विलासिता के लिए।
🧭 समाजशास्त्रीय और आर्थिक दृष्टिकोण
- शोध इस बात की पुष्टि करता है कि अलिमनी मुआवजे की तरह होती है—यह असहायता की भरपाई के लिए होती है, न कि स्व-निर्भरता के बजाय जीवनशैली बनाए रखने के लिए।
- अदालत का दावा है कि उच्चशिक्षित व सक्षम महिलाओं को रोजगार पर निर्भर रहना चाहिए, बजाय भत्तों पर वाजिब मांग रखने के।
📝 निष्कर्ष
इस मामले से स्पष्ट है कि भारत में अलिमनी का उपयोग “सामाजिक सुरक्षा” तक सीमित रहेगा, न कि “सामाजिक प्रतिष्ठा” तक। कोर्ट का सन्देश साफ़ है:
- “शिक्षा के साथ जिम्मेदारी भी आती है।”
- अलिमनी उनकी होनी चाहिए जो आर्थिक रूप से असहाय हों—न कि उनपर रोक लगाने के लिए।
यह फैसला आने वाले समय में अलिमनी कानूनी दावों को और सख्त रूप से जांचने के लिए आधार बनेगा।