कांग्रेस पार्टी के भीतर हाल ही में एक नया विवाद सामने आया है, जिसमें वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने पार्टी सांसद शशि थरूर पर परोक्ष रूप से निशाना साधा है। यह विवाद केंद्र सरकार द्वारा ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत एक बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल के गठन को लेकर है, जिसमें थरूर को शामिल किया गया है।
ऑपरेशन सिंदूर और कांग्रेस की आपत्ति
केंद्र सरकार ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत पाकिस्तान के खिलाफ आतंकवाद पर भारत की स्थिति को वैश्विक मंचों पर प्रस्तुत करने के लिए एक बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल का गठन किया है। कांग्रेस पार्टी ने इस प्रतिनिधिमंडल के लिए चार सांसदों के नाम प्रस्तावित किए थे: आनंद शर्मा, गौरव गोगोई, नासिर हुसैन और राजा बरार। हालांकि, सरकार ने इन नामों में बदलाव करते हुए शशि थरूर को भी शामिल कर लिया, जिससे कांग्रेस ने आपत्ति जताई।
जयराम रमेश ने सरकार के इस कदम को “बेईमानी” और “शरारती” करार दिया, और कहा कि यह कांग्रेस पार्टी की सहमति के बिना किया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस पार्टी अपने प्रस्तावित नामों में कोई बदलाव नहीं करेगी।
‘कांग्रेस में होना और कांग्रेस का होना’ का मतलब
जयराम रमेश ने शशि थरूर पर परोक्ष रूप से तंज कसते हुए कहा, “कांग्रेस में होना और कांग्रेस का होना, दोनों में ज़मीन-आसमान का फर्क है।” इस बयान को पार्टी के भीतर अनुशासन और सामूहिक निर्णय लेने की प्रक्रिया के संदर्भ में देखा जा रहा है। रमेश का मानना है कि किसी भी सांसद को पार्टी की सहमति के बिना ऐसे प्रतिनिधिमंडल में शामिल नहीं होना चाहिए।
शशि थरूर की प्रतिक्रिया
शशि थरूर ने इस विवाद पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “मैं इतनी आसानी से अपमानित नहीं होता। मुझे अपनी कीमत पता है।” उन्होंने स्पष्ट किया कि उन्होंने सरकार के निमंत्रण को राष्ट्रीय हित में स्वीकार किया है, और यह कोई राजनीतिक कदम नहीं है। थरूर ने यह भी कहा कि उन्होंने पार्टी से कोई चेतावनी या आपत्ति नहीं सुनी है, और मीडिया में चल रही खबरें केवल अटकलें हैं।
यह विवाद कांग्रेस पार्टी के भीतर अनुशासन, सामूहिक निर्णय और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बीच संतुलन की आवश्यकता को उजागर करता है। जहां पार्टी नेतृत्व सामूहिकता पर जोर देता है, वहीं शशि थरूर जैसे नेता व्यक्तिगत निर्णयों को राष्ट्रीय हित में उचित मानते हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस पार्टी इस आंतरिक मतभेद को कैसे सुलझाती है।