बिहार वोटर लिस्ट विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई: चुनाव आयोग को दस्तावेजों को लेकर लचीलापन बरतने की सलाह

बिहार में चल रही विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर उठे राजनीतिक विवाद के बीच, सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर अहम टिप्पणी की है। याचिकाकर्ताओं ने चुनाव आयोग की इस प्रक्रिया को असंवैधानिक बताया था, लेकिन कोर्ट ने फिलहाल इसमें कोई रोक लगाने से इनकार कर दिया है।

क्या है मामला?

बिहार में चुनाव आयोग द्वारा चलाए जा रहे SIR कार्यक्रम के तहत वोटर लिस्ट का संशोधन हो रहा है। विपक्षी दलों का आरोप है कि इस प्रक्रिया के जरिए करोड़ों मतदाताओं को सूची से बाहर किया जा सकता है, खासकर गरीब और प्रवासी वर्ग को, जिनके पास सभी निर्धारित दस्तावेज़ नहीं होते।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने स्पष्ट किया कि वो चुनाव आयोग की संवैधानिक भूमिका में हस्तक्षेप नहीं करेगी। हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि वोटर के रूप में पंजीकरण के लिए केवल एक दस्तावेज़ तक सीमित रहना उचित नहीं है।

कोर्ट ने चुनाव आयोग को सुझाव दिया कि आधार कार्ड, राशन कार्ड, और वोटर आईडी जैसे सामान्य रूप से उपलब्ध दस्तावेज़ों को भी स्वीकार किया जाए। इससे उन लोगों को राहत मिलेगी जो अभी तक वंचित हो सकते थे।

अगली सुनवाई की तारीख

सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 28 जुलाई की तारीख तय की है। तब तक चुनाव आयोग को अपना जवाब दाखिल करना होगा और यह स्पष्ट करना होगा कि दस्तावेजों के चयन को लेकर क्या बदलाव संभव हैं।

राजनीतिक प्रतिक्रियाएं

विपक्षी दलों ने सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी का स्वागत किया है और इसे आम नागरिकों की जीत बताया है। बिहार में राजद और कांग्रेस जैसे दलों ने कहा कि चुनावी प्रक्रिया से किसी को भी वंचित नहीं किया जाना चाहिए।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला चुनावी पारदर्शिता और आम नागरिकों के मताधिकार की सुरक्षा के लिहाज से महत्वपूर्ण है। हालांकि, चुनाव आयोग की प्रक्रिया फिलहाल जारी रहेगी, लेकिन अब उसे ज्यादा संवेदनशीलता और समावेशी दृष्टिकोण अपनाने की उम्मीद की जा रही है।