बिहार में आगामी चुनावों से पहले एक बड़ा चुनावी विवाद सामने आया है, जिसका सीधा संबंध मतदाता सूची (वोटर लिस्ट) से है। चुनाव आयोग द्वारा शुरू की गई विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया (Special Intensive Revision – SIR) पर अब सुप्रीम कोर्ट की निगाहें हैं।
क्या है SIR प्रक्रिया?
इस प्रक्रिया के तहत चुनाव आयोग ने बिहार में मतदाता सूची का पूर्ण निरीक्षण शुरू किया है। इसके अंतर्गत 2003 के बाद से सूची में शामिल हुए सभी मतदाताओं से फिर से दस्तावेज मांगे गए हैं। अनुमान है कि लगभग 4 करोड़ मतदाता इस प्रक्रिया से प्रभावित होंगे। उन्हें एक नया फॉर्म भरकर अपनी नागरिकता और पात्रता साबित करनी होगी।
विपक्ष की आपत्ति क्या है?
कांग्रेस, राजद, आम आदमी पार्टी, PUCL और अन्य संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर यह दावा किया है कि चुनाव आयोग की यह प्रक्रिया:
- संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन है।
- करोड़ों मतदाताओं को अनावश्यक दस्तावेजों की मांग कर मतदान के अधिकार से वंचित कर सकती है।
- अल्पसंख्यकों, दलितों, प्रवासी मजदूरों और गरीब वर्गों को सबसे अधिक प्रभावित कर सकती है।
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अदालत में तर्क दिया कि यह कदम लोकतंत्र को कमजोर करने वाला है और लाखों भारतीयों को “डीन्युट्रलाइज” कर सकता है।
सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया
सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल प्रक्रिया पर रोक नहीं लगाई, लेकिन यह स्पष्ट किया कि:
- नागरिकता की पुष्टि करना गृह मंत्रालय का काम है, न कि चुनाव आयोग का।
- मतदाता सूची का संशोधन कानून के अनुसार होना चाहिए, लेकिन इस तरह की प्रक्रिया से चुनाव से पहले भ्रम और अन्याय फैल सकता है।
अदालत ने चुनाव आयोग से यह भी पूछा कि इतने व्यापक बदलाव की आवश्यकता क्यों पड़ी और क्यों इसे चुनावों से ठीक पहले लागू किया गया?
चुनाव आयोग का पक्ष
चुनाव आयोग का कहना है कि यह कदम पूरी तरह वैधानिक है और 2003 के बाद से बिहार में मतदाता सूची का संपूर्ण पुनरीक्षण नहीं हुआ है। SIR का उद्देश्य है कि सभी वास्तविक नागरिकों के नाम सूची में रहें और अवैध नाम हटाए जाएं।
आयोग का दावा है कि यह पारदर्शिता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है।
विवाद क्यों अहम है?
मुद्दा | विवरण |
---|---|
समय | विधानसभा चुनाव से पहले इतनी बड़ी प्रक्रिया सवालों के घेरे में |
दस्तावेज़ी बोझ | गरीब और वंचित वर्गों के लिए नए दस्तावेज़ जुटाना चुनौती |
राजनीतिक प्रभाव | करोड़ों मतदाता प्रभावित, चुनावी समीकरण बदल सकते हैं |
संवैधानिक बहस | क्या EC को नागरिकता जांच का अधिकार है? |
निष्कर्ष
बिहार की वोटर लिस्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट में उठे इस मामले ने देशभर में लोकतांत्रिक अधिकारों पर एक नई बहस छेड़ दी है। चुनाव आयोग की मंशा यदि पारदर्शिता है, तो उसे प्रक्रिया को सरल और नागरिकों के लिए समावेशी बनाना होगा। वहीं विपक्ष इसे साजिश और ध्रुवीकरण का हथकंडा मान रहा है।
आगामी सुनवाई में यह स्पष्ट होगा कि भारत की लोकतांत्रिक संरचना मतदाता अधिकारों की रक्षा के लिए कितना तैयार है।