सुप्रीम कोर्ट ने शरणार्थियों को लेकर अहम टिप्पणी करते हुए साफ कहा है कि “भारत कोई धर्मशाला नहीं है”, जहां कोई भी आकर बस जाए। कोर्ट ने यह सख्त टिप्पणी अवैध तरीके से भारत में रहने वाले विदेशी नागरिकों को लेकर दी है।
पूरा मामला क्या है?
देश की सर्वोच्च अदालत में एक याचिका दायर की गई थी जिसमें अवैध शरणार्थियों को मानवाधिकारों का हवाला देकर भारत में रहने की अनुमति देने की मांग की गई थी। याचिकाकर्ता का तर्क था कि कुछ विदेशी नागरिक लंबे समय से भारत में रह रहे हैं, उन्हें जबरन देश से निकाला जाना मानवाधिकारों का उल्लंघन होगा।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी:
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने स्पष्ट रूप से कहा:
“भारत कोई धर्मशाला नहीं है। हर कोई यहां आकर नहीं रह सकता। कानून के अनुसार कार्रवाई जरूरी है।”
कोर्ट ने केंद्र सरकार को यह अधिकार दिया है कि वह अवैध प्रवासियों को देश से बाहर निकालने के लिए आवश्यक कदम उठा सकती है।
भारत में शरणार्थी संकट की हकीकत:
भारत में रोहिंग्या, अफगान, बांग्लादेशी, और अन्य कई देशों के हजारों शरणार्थी रह रहे हैं। इनमें से कई के पास न तो वैध दस्तावेज हैं और न ही वीजा।
ये शरणार्थी कई बार सुरक्षा, रोजगार, और सांप्रदायिक तनाव जैसे मुद्दों को जन्म देते हैं। ऐसे में सरकार और अदालतें इस विषय पर लगातार सख्त रुख अपनाती रही हैं।
सरकार की दलील:
भारत सरकार का कहना है कि अवैध रूप से रह रहे नागरिकों को बाहर निकालना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से जरूरी है। शरणार्थियों के नाम पर आतंकवादियों के घुसपैठ की आशंका भी जताई जाती रही है।
सुप्रीम कोर्ट का यह रुख एक बड़ा संदेश है कि भारत की सहनशीलता की भी सीमा है। अब यह देखना होगा कि सरकार इस दिशा में क्या कदम उठाती है।