बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता तेजस्वी यादव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर केंद्र सरकार द्वारा आगामी राष्ट्रीय जनगणना में जातिगत आंकड़े शामिल करने के निर्णय का स्वागत किया है। उन्होंने इस कदम को “हमारे राष्ट्र की समानता की दिशा में एक ऐतिहासिक क्षण” बताया है और आग्रह किया है कि इस डेटा का उपयोग वास्तविक नीतिगत सुधारों के लिए किया जाए, न कि केवल संग्रहण के लिए।
पत्र की मुख्य बातें:
- सावधानीपूर्वक आशावाद: तेजस्वी यादव ने केंद्र सरकार के इस निर्णय को “सावधानीपूर्वक आशावाद” के साथ देखा है, यह उल्लेख करते हुए कि वर्षों से एनडीए सरकार ने जातिगत जनगणना की मांगों को विभाजनकारी और अनावश्यक बताकर खारिज किया था।
- आरक्षण नीतियों की पुनः समीक्षा: उन्होंने लिखा है कि जातिगत जनगणना केवल सामाजिक न्याय की दिशा में पहला कदम है। इस डेटा का उपयोग सामाजिक सुरक्षा और आरक्षण नीतियों की व्यापक समीक्षा के लिए किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि आरक्षण पर वर्तमान 50% की सीमा पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए।
- राजनीतिक प्रतिनिधित्व में सुधार: तेजस्वी यादव ने आगामी परिसीमन अभ्यास में जातिगत डेटा को शामिल करने का आग्रह किया है, ताकि वंचित समुदायों को उनके जनसंख्या अनुपात के अनुसार राजनीतिक प्रतिनिधित्व मिल सके।
- निजी क्षेत्र और न्यायपालिका में आरक्षण: उन्होंने निजी क्षेत्र और न्यायपालिका में भी पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की मांग की है, यह तर्क देते हुए कि ये क्षेत्र भी सार्वजनिक संसाधनों से लाभान्वित होते हैं और उन्हें सामाजिक विविधता को प्रतिबिंबित करना चाहिए। The Times of India
- केंद्र सरकार की पूर्ववर्ती रुकावटें: तेजस्वी यादव ने आरोप लगाया कि जब बिहार ने अपनी जातिगत सर्वेक्षण की पहल की थी, तब केंद्र सरकार ने विभिन्न स्तरों पर बाधाएं उत्पन्न की थीं, जिसमें शीर्ष सरकारी अधिकारियों और भाजपा नेताओं का विरोध शामिल था।
राजनीतिक संदर्भ:
यह पत्र ऐसे समय में आया है जब बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारी चल रही है, और जातिगत जनगणना एक प्रमुख राजनीतिक मुद्दा बन गया है। तेजस्वी यादव का यह कदम सामाजिक न्याय के एजेंडे को आगे बढ़ाने और वंचित समुदायों के हक की आवाज़ बनने की दिशा में एक रणनीतिक प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।
तेजस्वी यादव ने अपने पत्र में स्पष्ट किया है कि जातिगत जनगणना केवल आंकड़ों का संग्रह नहीं होनी चाहिए, बल्कि यह सामाजिक न्याय, समानता और प्रतिनिधित्व की दिशा में ठोस कदमों का आधार बननी चाहिए। उन्होंने प्रधानमंत्री से आग्रह किया है कि इस ऐतिहासिक अवसर का उपयोग वास्तविक और प्रभावी नीतिगत सुधारों के लिए किया जाए, ताकि देश के वंचित और पिछड़े वर्गों को उनका उचित हक मिल सके।